Sonia Jadhav

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वार्षिक प्रतियोगिता- कहानी-चाय की टपरी

चाय की टपरी

चाय की टपरी वो जगह है जहाँ दिल बेबाक होकर चाय की चुस्कियों का आनंद लेता है, अपने रोजमर्रा के तनाव को कुछ पल के लिए ही सही, भूल जाता है। सुबह घर से चाय पीकर निकलने के बाद भी मैं नुक्क्कड़ वाली चाय की टपरी पर खड़े रहकर चाय पीने का मोह छोड़ नहीं पाता था। मेरे लिए चाय की टपरी , सिर्फ चाय की टपरी नहीं थी, बीती हुई यादों का पुलिंदा थी।

 मुम्बई में मानसून शुरू हो चुका था, बाहर तेज बारिश हो रही थी। बारिश से बचने के लिए वो एक चाय की टपरी के नीचे खड़ा हो गया था। लोग बारिश का मजा लेते हुए गरमा गरम चाय पी रहे थे और इधर-उधर की बातों पर चर्चा कर रहे थे। वहीं एक कोने में वो भी खड़ी थी सिमटी हुई, अपने बदन को अपने बैग, अपने दुपट्टे से ढकने की नाकाम कोशिश करती हुई, अपनी ही सोच में गुम धीरे-धीरे चाय पी रही थी।

मैं ठहरा दक्षिण भारतीय, मुझे चाय बिल्कुल भी पसन्द नहीं थी। मुझे कॉफ़ी पसन्द थी। उसे निहारने के चक्कर में एक कप चाय मैंने भी ले ली। पहला घूँट पीते ही मन हुआ कि थूक दूँ, लेकिन फिर रुक गया। बारिश हल्की होते ही लोग वहाँ से निकलने लगे, वो लड़की अभी भी वहीँ खड़ी थी, किसी से फोन पर बात कर रही थी, शायद अपने बॉयफ्रेंड से। शक्ल से तो शादीशुदा नहीं लग रही थी।

चायवाला मेरी नजरों को भांप गया था। उसने मेरी तरफ देखते हुए तेज़ आवाज़ में कहा.....साहब बारिश बन्द हो गयी है।
मैंने उसकी तरफ गुस्से से देखते हुए कहा....कोई बात नहीं , एक कप चाय और बना दो।

उस लड़की ने पल भर के लिए मेरी तरफ देखा और वो चली गयी। उसके जाते ही मैंने चाय वाले को पैसे दिए और बिना चाय पीये वहाँ से निकल गया।

उस चाय वाले की टपरी के नीचे अक्सर मुलाकातें होनी लगी थीं। जितनी देर मैं वहाँ रहता, बस उसे ही तिरछी नजरों से देखता रहता। एक आकर्षण था उसके साधारण रंग रूप में जो मुझे उसकी तरफ खींचता था। मन ने कई बार चाहा कि उससे दिल की बात कहूँ, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाया। 

मानसून खत्म होने को था। उस दिन चाय की टपरी पर सिर्फ हम दोनों ही खड़े थे। उसने अचानक से मेरे पास आकर कहा.... आपके चेहरे से पता चलता है कि आप दक्षिण भारतीय हैं। आपको चाय नहीं, कॉफी पसन्द है। इस शहर ने मुझे बहुत तकलीफें दी है, इसलिए मैं यह शहर छोड़कर जा रही हूँ।  कल से मैं आपको यहाँ नहीं दिखूंगी। यूँ तो आपसे यह सब कहने का कोई मतलब नहीं है, हमारे बीच कोई जान-पहचान नहीं है। मैं जानती हूँ चाय पीना सिर्फ एक बहाना है, आपकी नजरों को मैंने हमेशा मुझसे कुछ कहते हुए पाया है। कभी इस शहर में दुबारा आना हुआ तो फिर मिलेंगे और तब चाय नहीं, कॉफी पीयेंगे।

अचानक से कही गयी उसकी बातों ने मुझे हैरान कर दिया था। मैं चाहकर भी कुछ कह नहीं पाया और वो फिर से मिलने की एक झूठी उम्मीद देकर चली गयी।

 लम्बा वक्त बीत चुका थे इस टपरी पर आकर चाय पीते हुए। इस बार मानसून में आँखें फिर से उसे तलाश रही थीं। अचानक से किसी ने मुझे आवाज देते हुए कहा....सुनिए आप मेरे साथ कॉफ़ी पीने चलेंगे क्या?
हल्के नीले रंग की साड़ी में वही थी, छाते में खुद को बारिश से बचाती हुई।
उसे देखकर आज फिर मैं कुछ नहीं कह पाया था। मैंने उसका हाथ थामा और हम निकल गए अपनी पहली कॉफी डेट के लिए।

❤सोनिया जाधव

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7 Comments

Shilpa modi

28-Feb-2022 12:06 PM

वाहहह

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जी खूबसूरत रचना।

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बहुत खूबसूरत चाय से कॉफी का सफर

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